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बिहार

वनडे नहीं बिहार में 20-20 खेल रहे तेजस्वी यादव, नीतीश के खिलाफ कितना कारगर होगा ये फॉर्मूला?

बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर सियासी तापमान अब पूरी तरह से चढ़ चुका है. बीजेपी-जेडीयू की दोस्ती सत्ता पर अपना वर्चस्व बनाए रखने की कोशिश में है तो राजद-कांग्रेस और वामपंथी दल मिलकर किस्मत आजमा रहे हैं. इंडिया गठबंधन की अगुवाई कर रहे आरजेडी नेता तेजस्वी यादव बिहार की सियासी रणभूमि में नीतीश कुमार को मात देने के लिए वन-डे नहीं बल्कि 20-20 का सियासी मैच खेल रहे हैं. नीतीश कुमार के 20 सालों के शासन के जवाब में तेजस्वी ने 20 महीने में 20 वादों का दांव चला है.

तेजस्वी बिहार की जनता से पांच साल का समय नहीं बल्कि 20 महीना का वक्त मांग कर रहे हैं और 20 महीने में 20 वादे पूरे करने का भी वचन दे रहे हैं. आरजेडी ने बिहार चुनाव के लिए अपना घोषणा पत्र जारी नहीं किया है, लेकिन तेजस्वी यादव ने अपने पत्ते खोल दिए हैं. तेजस्वी ने जनता के सामने अपने 20 सूत्री एजेंडा रखा है, जिसको 20 महीने में पूरा करने का भी वादा किया है. ऐसे में सवाल उठता है कि नीतीश के खिलाफ तेजस्वी का 20-20 का फॉर्मूला कितना कारगर रहेगा?

तेजस्वी यादव का 20-20 फॉर्मूला

इंडिया गठबंधन ने भले ही तेजस्वी यादव को बिहार सीएम पद का चेहरा घोषित न किया हो, लेकिन 2025 का चुनाव उनकी ही अगुवाई में लड़ने का फैसला किया है. ऐसे में तेजस्वी क्रिकेट की तरह बिहार की सियासत में फ्रंटफुट पर उतरकर ताबड़तोड़ बल्लेबाजी कर रहे हैं. प्रदेश की जनता के सामने तेजस्वी ने 20 महीने में 20 वादे पूरे करने का एजेंडा रखा है.

क्या हैं तेजस्वी के 20 वादे?

तेजस्वी ने बिहार के लोगों से डोमिसाइल नीति लागू करने का वादा किया है. इसके बाद 65 फीसदी आरक्षण लागू करने, नौकरी-रोजगार दिलाने, युवा आयोग बनाने, मुफ्त में परीक्षा फॉर्म भरवाने, पेपर लीक पर पूर्ण लगाम लगाने, माई-बहिनों के खाते में हर महीने 2500 रुपये देने, सामाजिक पेंशन 1500 रुपये देने का वादा किया है.

इसके अलावा 500 रुपये में गैस सिलेंडर देने, 200 यूनिट मुफ्त बिजली मुफ्त, ताड़ी को शराबबंदी से बाहर करने, बेटी योजना लागू करने,महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित, शिक्षा व्यवस्था को बेहतर करने, भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने, स्वास्थ्य की सुविधा सुगम और बेहतर करने, बिहार में नए निवेश लाने, उद्योग-धंधे लगाने, पलायन पर लगाम लगाने और 20वां वादा पर्यटन उद्योग बढ़ाने का किया है.

20 साल बनाम 20 महीने का एजेंडा

नीतीश कुमार ने 2005 में आरजेडी के 15 साल के शासन को खत्म कर सत्ता की बागडोर संभाली थी. इसके बाद 20 सालों से बिहार की सियासत नीतीश कुमार के इर्द-गिर्द ही सिमटी हुई है और सत्ता की बागडोर अपने हाथों में रखे हुए हैं. इस तरह से नीतीश के 20 साल के शासन के जवाब में तेजस्वी यादव 20 महीने का एजेंडा सेट कर रहे. बिहार की जनता से तेजस्वी पांच साल का समय नहीं मांग रहे हैं बल्कि 20 महीने का वक्त मांग रहे हैं. तेजस्वी यादव ने सीएम नीतीश कुमार पर हमला करते हुए जेडीयू के 20 सालों के शासन के जवाब में 20 महीने में 20 वादों को पूरा करने का वचन दे रहे हैं.

तेजस्वी यादव 2020 के विधानसभा चुनाव में सत्ता में वापसी करने से चूक गए थे, लेकिन इस बार कोई मौका नहीं गंवाना चाहते हैं. इसीलिए 2025 के विधानसभा चुनाव में युवाओं को रोजगार देने से लेकर सामाजिक न्याय का एजेंडा सेट करने में जुटे हैं. नीतीश के 20 साल के शासन के जवाब में सिर्फ 20 महीने का ही समय मांग रहे. 20 महीने में 20 वादों को पूरा करने का भी वचन दे रहे हैं. इसके लिए तेजस्वी अगस्त 2020 से जनवरी 2024 तक यानी 17 महीने सत्ता में रहने के दौरान रोजगार से लेकर जातिगत सर्वे और आरक्षण बढ़ाने के काम को रख रहे हैं.

अगस्त 2022 में नीतीश कुमार ने बीजेपी से गठबंधन तोड़ लिया था और जनवरी 2024 तक आरजेडी के साथ मिलकर सरकार चलाई थी. इस दौरान सीएम नीतीश कुमार थे और डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव थे. इन 17 महीनों में नीतीश के अगुवाई वाली महागठबंधन सरकार ने बिहार में जाति सर्वे कराने से लेकर आरक्षण और सरकारी नौकरियों की जबरदस्त भर्ती निकाली थी. इस काम का क्रेडिट तेजस्वी अपने नाम लेना चाहते हैं और अब 20 महीने में 20 वादों को पूरा करने का भी दांव चल रहे हैं, लेकिन 20-20 वाले फार्मूले से एनडीए से पार पाएंगे?

नीतीश के खिलाफ सफल होंगे तेजस्वी?

बिहार का विधानसभा चुनाव में नीतीश के अगुवाई वाले एनडीए और तेजस्वी के अगुवाई वाले इंडिया गठबंधन के बीच सीधा मुकाबला माना जा रहा है. नीतीश कुमार की जेडीयू के साथ बीजेपी, चिराग पासवान की एलजेपी, जीतन राम मांझी की HAM और उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी है. वहीं, तेजस्वी यादव की आरजेडी के साथ कांग्रेस, सीपीआई माले, सीपीआई-सीपीएम और मुकेश सहनी की वीआईपी है. इसके अलावा पशुपति पारस की पार्टी एलजेपी के साथ रहने की संभावना है. इस तरह से दोनों ही गठबंधनों ने प्रदेश के सियासी समीकरण के लिहाज से अपने-अपने गठबंधन बना रखे हैं.

एनडीए सीएम नीतीश और पीएम मोदी के नाम और काम पर सियासी माहौल बनाने में एनडीए जुटा है तो ऑपरेशन सिंदूर के बाद सियासी फिजा पूरी तरह से उसके पक्ष में दिख रही है. इस तरह से एनडीए बिहार में कास्ट समीकरण से लेकर राष्ट्रवाद और हिंदुत्व के एजेंडे का ताना-बाना बुन रही है. इस तरह से एनडीए के सियासी चक्रव्यूह को भेदना तेजस्वी यादव और राहुल गांधी की जोड़ी के लिए आसान नहीं है.

सीएम नीतीश और पीएम मोदी की सियासी जोड़ी लगातार मजबूत गठबंधन ही नहीं बल्कि एक बेहतर जातीय समीकरण के सहारे उतरी है. पहलगाम हमले के बाद भारतीय सेना की तरफ से पाकिस्तान में किए गए ऑपरेशन सिंदूर से एनडीए के पक्ष में सकारात्मक माहौल बना हुआ है और मोदी सरकार ने जातिगत जनगणना कराने का फैसला करके विपक्ष के हाथों से बड़ा मुद्दा छीन लिया है. बिहार चुनाव में बीजेपी ने इन्हीं मुद्दों के सहारे उतरने की रणनीति बनाई है, जिसे पूरी तह भेदे बिना सत्ता के सियासी वनवास को खत्म करना इंडिया गठबंधन के लिए काफी मुश्किल है.

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