अंकारा । तुर्की में भूकंप के बाद आर्दोआन की सरकार पर सवाल उठने लगे हैं। भूकंप आम लोगों पर कहर बनकर टूटा ही है, वहीं यह रेचेप तैय्यप आर्दोआन की सत्ता के लिए संकट बनकर उभरा भी है। तुर्की में जल्द ही चुनाव भी होने वाले हैं, ऐसे में आर्दोआन की सत्ता दांव पर लगी हुई है। इस समय जनता में आक्रोश है और वह आर्दोआन की अपील सुनने को भी तैयार नहीं है। मीडिया के अनुसार भूकंप में तुर्की औऱ सीरिया में कुल 34 हजार से अधिक लोगों की जान जा चुकी है। वहीं यह आंकड़ा अभी और बढ़ने का अनुमान है। मालूम हो कि वर्ष 1999 में भी तुर्की में भूकंप आया था और करीब 17 हजार लोग मारे गए थे। इसके बाद से आदेश जारी किया गया था कि सभी इमारतों को भूकंपरोधी बनाया जाए। कॉस्ट्रक्टर्स को भी हिदायत दी गई। इस काम के लिए जनता से अलग टैक्स भी वसूला गया, लेकिन इतने सालों में भी इमारतें भूकंपरोधी नहीं बन पाईं।
राष्ट्रपति लोगों को यह कहकर शांत करने की कोशिश कर रहे हैं कि ऐसी घटनाएं तो हुआ ही करती हैं। उन्होंने पीड़ित परिवारों को 530 डॉलर की तत्काल मदद देने की घोषणा की है। इसके अलावा एक साल के अंदर पीड़ितों के घर बनाने का भी आदेश दिया गया है। हालांकि, यह काम इतनी जल्दी नहीं पूरा किया जा सकता। जाहिर सी बात है कि उन्हें जनता के आक्रोश का सामना करना पड़ेगा।
आर्दोआन की सरकार को अब साबित करना होगा कि वह लोगों के नेता हैं औऱ उन्होंने भूकंप पीड़ितों की मदद की। इसके अलावा इतनी बड़ी संख्या में इमारतों के धराशायी होने के बाद लोगों के रहने की व्यवस्था करना भी उनके लिए चुनौती है। 1939 में तुर्की में खतरनाक भूकंप आया था। इस बार तुर्ती के 81 प्रांत भूकंप प्रभावित हुए हैं। भूकंप के बाद आर्दोआन सरकार का इंतजाम भी सुस्त दिखा और लोगों के पास राहत पहुंचने में समय लगा। अब अंतरराष्ट्रीय मदद पहुंच रही है और कई देशों के दल राहत और बचाव के काम में लगे हुए हैं। बताया जा रहा है कि केवल तुर्की में 12 हजार इमारतें ध्वस्त हो गईं। हाल यह है कि तुर्की डिजास्टर अथॉरिटी के कर्मचारी ही भूकंप में फंस गए। आर्दोआन ने स्वयं स्वीकार किया कि समय पर लोगों के पास मदद नहीं पहुंच पाई और जिम्मेदार लोगों पर कार्रवाई की जाएगी। भूकंप प्रभावित ज्यादातर प्रांतों में आर्दोआन की पार्टी एकेपी का शासन है। वह 20 साल से सत्ता में हैं औऱ अब उनकी नीतियों का विरोध हो रहा है। वहीं किलिकदारोगलु 6 पार्टियों का नेतृत्व करते हैं जो कि मिलकर आर्दोआन के खिलाफ संयुक्त उम्मीदवार खड़ा कर सकते हैं। वहीं तुर्की में अर्थव्यवस्था भी बिगड़ रही है। यहां महंगाई 57 फीसदी की दर पर है।
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