कोरबा। केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण की रिपोर्ट के अनुसार राज्य में वर्ष 2031-32 तक 19700 मेगावाट बिजली की आवश्यकता होगी। प्रस्तावित 660 मेगावाट की दो इकाइयों की स्थापना के बाद भी राज्य विद्युत संयंत्र से मांग के अनुरूप 30 प्रतिशत ही उपलब्ध रहेगी। जबकि आदर्श स्थिति में 50 प्रतिशत बिजली स्वयं के स्त्रोतों से होनी चाहिए। छत्तीसगढ़ विद्युत मंडल अभियंता संघ ने इस समस्या से निपटने मड़वा संयंत्र में विस्तार परियोजना व बंद हो चुके पूर्व संयंत्र परिसर में बैटरी स्टोरेज सहित सौर ऊर्जा संयंत्र की स्थापना का प्रस्ताव रखा गया है।
एक नवंबर 2000 को राज्य की स्थापना उपरांत तीव्र औद्योगिक विकास और जीवन स्तर में परिवर्तन के पीछे राज्य में सतत और सस्ती बिजली की उपलब्धता रही। इसी वजह से छत्तीसगढ़ को पावर हब आफ इंडिया के रूप में पहचान मिली। परंतु दुर्भाग्य से वर्ष 2008 में कोरबा पश्चिम एवं मड़वा तेंदुभाठा में 500 मेगावाट की तीन इकाइयों की स्थापना आदेश जारी हुआ, पर इसके बाद वर्ष 2022 में कोरबा पश्चिम में 660 मेगावाट की दो इकाइयों के स्थापना का निर्णय लिया गया है। वह भी वर्ष 2030 तक शुरू हो पाएगी। वर्तमान में स्वयं के संयंत्रों से 45 प्रतिशत ही बिजली की पूर्ति हो रही है।
जबकि वर्ष 2001 में आवश्यकता का शत- प्रतिशत स्वयं के स्त्रोतों से पूर्ति करते होती थी। इस समस्या से निपटने छत्तीसगढ़ विद्युत मंडल अभियंता संघ ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के समक्ष मड़वा में विस्तार परियोजना व कोरबा पूर्व में बंद हो चुके संयंत्र परिसर में सौर उर्जा संयंत्र स्थापना का प्रस्ताव रखा है। संघ के प्रदेश अध्यक्ष राजेश पांडेय ने कहा है कि सस्ती एवं निशर्त बिजली वर्तमान में राज्य को एनटीपीसी से प्राप्त होने वाली बिजली की तुलना में छत्तीसगढ़ राज्य उत्पादन कंपनी से प्राप्त होने वाली बिजली लगभग 50 पैसे यूनिट सस्ती है। निजी विद्युत गृहों की दरें और भी ज्यादा है। यदि राज्य वितरण कंपनी किसी केद्रीय, निजी कंपनी के भुगतान में एक माह भी चूक कर दे, तो राज्य को बाहरी स्रोतों से प्राप्त होने वाली बिजली सप्लाई बंद कर दी जाती है। चूंकि कोरबा में देश की सबसे बडे कोयला खदान है, इसलिए विद्युत संयंत्र स्थापित किए जा सकते हैं।
38 हजार मेगावाट के नए ताप विद्युत संयंत्र की होगी आवश्यकता
कोरोना काल के बाद बिजली की मांग में तेज वृद्धि हुई है। पहले उम्मीद थी कि निर्माणाधीन परियोजनाओं के अतिरिक्त किसी भी नए ताप विद्युत गृह की आवश्यकता नहीं होगी, पर अब केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण एवं केंद्रीय विद्युत नियामक आयोग का मानना है कि वर्ष 2030 तक 38000 मेगावाट क्षमता की नई ताप विद्युत परियोजनाओं की आवश्यकता होगी। वहीं वर्तमान में ही पीक पावर रेट 10 रुपये प्रति यूनिट है व दिसंबर में यह 40 रुपये प्रति यूनिट तक पहुंच गया था। आशंका जताई जा रही है कि आगामी कुछ वर्षों में मांग और बढ़ने पर बाजार आधारित बिजली की दरें बहुत ज्यादा बढ़ सकती है।
रेल लाइन, पानी समेत अन्य संसाधन उपलब्ध
मड़वा में संयंत्र स्थापना की वजह स्पष्ट करते हुए पांडेय ने कहा कि मड़वा- तेंदुभाठा परियोजना में प्रारंभ से ही चार इकाइयों की स्थापना की परिकल्पना की गई थी, इसलिए पर्याप्त जमीन की उपलब्धता है। ऐसी स्थिति में विस्तार इकाई लगाए जाने से कोई दिक्कत नहीं होगी। इसी तरह पानी के लिए पहले से ल संसाधन विभाग से तीन इकाई की आवश्यकता के अनुरूप अनुबंध है, अतिरिक्त पानी के लिए किसी में स्टाप डैम- एनीकट की जरूरत नही पड़ेगी। कोयला आपूर्ति के लिए रेल लाइन बिछे होने के साथ अन्य संसाधन उपलब्ध है। मड़वा संयंत्र गृह राज्य पारेषण ग्रिड से पूर्ण क्षमता से संबद्ध है, इसलिए ट्रांसमिशन नेटवर्क के लिए कोई कठिनाई नहीं है। परियोजना में पहले से दो इकाइयों के परिचालन में होने के कारण सभी अन्य आवश्यक अधोसंरचनाएं भी उपलब्ध है। इससे परियोजना स्थल में विस्तार इकाइयों की स्थापना किए जाने पर न केवल पूंजीगत लागत कम होगी बल्कि संचालन संधारण में भी कम खर्च आएगा।
नहरों पर सोलर पैनल लगा उत्पादित की जा सकती है बिजली
पांडेय ने कहा कि बंद हो चुके कोरबा पूर्व संयंत्र की खाली जमीन पर बैटरी स्टोरेज समेत सौर ऊर्जा संयंत्र भी स्थापित किया जा सकता है। इसे हसदेव बराज से कोरबा पूर्व व पश्चिम ताप विद्युत गृह को जोड़ने वाली नहरों पर सोलर पैनल के माध्यम से सौर ऊर्जा उत्पादन को भी जोड़ा जा सकता है। इससे पर्यावरण की रक्षा, पानी की बचत व विद्युत उत्पादन एक साथ होने से एक साधे-सब साधे की कहावत चरितार्थ होगी। यह अपने तरह की प्रथम परियोजना होगी एवं अन्य राज्यों के लिए भी मिसाल बनेगी। इसलिए मड़वा परियोजना में विस्तार इकाई व कोरबा पूर्व में बैटरी स्टोरेज सहित सौर ऊर्जा संयंत्र की स्थापना के लिए निर्देश जारी किया जाना चाहिए।
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