मिथाइलिनडाइआक्सी मैथेमफेटामाइन (एमडीएमए) केस में बिलाल खान की गिरफ्तारी से क्राइम ब्रांच ने हाथ खींच लिए थे। दो साल से फरार बिलाल के खिलाफ खूब शिकायतें हुई लेकिन अफसर नेताओं के दबाव में बचते रहे। भाजपा नेता कमाल खान के बेटे बिलाल के कारण ही विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल पदाधिकारियों ने प्रदर्शन किया था। दो साल से फरार बिलाल पर डीसीपी (अपराध) निमिष अग्रवाल ने खुद पिछले वर्ष 26 सितंबर को इनाम घोषित किया था। हिंदू संगठन द्वारा प्रदर्शन करने और जोन-3 के डीसीपी धर्मेंद्रसिंह भदौरिया की छुट्टी के बाद इंटेलिजेंस ने पड़ताल की तो पता चला पुलिस भाजपा नेताओं की लड़ाई की शिकार हो गई। बिलाल के घर दबिश देने के पहले पुलिस को रोक लिया जाता था जबकि ताई यानी पूर्व लोकसभा अध्यक्ष स्वयं बिलाल की गिरफ्तारी न किए जाने पर नाराजगी जता चुकी थी।
फर्जी लिस्ट में ठगा गए असली डीएसपी
तबादले की जद्दोजहद में लगे उप पुलिस अधीक्षक (डीएसपी) के साथ धोखा हो गया। जुगाड़ के कारण मनमाफिक पोस्टिंग तो हुई लेकिन लिस्ट फर्जी निकल गई। परेशान डीएसपी एक महीने से नेताओं और पीएचक्यू के चक्कर लगा रहे हैं। तीन साल से जमे डीएसपी ट्रांसफर की जद में हैं। सभी ने अपने-अपने स्तर पर सेटिंग की और नए जिले सुनिश्चित कर लिए। 8 जून को गृह विभाग से 25 डीएसपी की सूची जारी हुई तो वे खुशी से झूम उठे। ज्यादातर डीएसपी उसी स्थान पर भेजे गए जहां वह चाहते थे। रात होते-होते उनकी खुशी यह सुनकर काफूर हो गई कि सूची फर्जी है। इस पर अवर सचिव (गृह विभाग) अन्नू भलावी का नाम तो लिखा है लेकिन हस्ताक्षर नहीं हैं। अब डीएसपी दोहरी मुसीबत में हैं। एक तो उनकी मेहनत पर पानी फिर गया। दूसरा बड़ा नुकसान यह हुआ कि उनकी पोस्टिंग का राज खुल गया।
एसीपी-टीआइ की सजा भुगत रहे अफसर
एबीसीडी मल्टी में हुए पर्चाकांड के बाद स्पष्ट हो गया कि एसीपी और थाना प्रभारियों की लापरवाही अफसरों पर भारी पड़ रही है। उनकी निष्क्रियता और संवादहीनता के कारण छोटे-छोटे मसले विवाद का रूप ले लेते हैं। पहला घटनाक्रम पलासिया थाना का है। हिंदू संगठन के साथ हुआ विवाद टीआइ-एसीपी स्तर पर संभल सकता था। संवाद के ढंग ने मामला बिगाड़ दिया और सरकार को कूदना पड़ा। ट्रेजर टाउन में बनी ईडब्ल्यूएस मल्टी के रहवासियों ने पलायन के पर्चे चिपकाए तो अफसरों को कूदना पड़ा। मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान और गृहमंत्री डा.नरोत्तम मिश्रा को बैठक लेनी पड़ी। तमाम छानबीन के बात जो बात सामने आई वो चौकाने वाली थी। पलायन पर मजबूर हुए रहवासियों से थाना प्रभारी सतीश पटेल का तालमेल नहीं था। जोन-1 के डीसीपी आदित्य मिश्रा के बताने पर भी टीआइ ने रहवासियों से मिलना उचित नहीं समझा। न उनकी शिकायतों को गंभीरता से लिया गया।
सांसत में है ‘चीता’ की जान
कांग्रेस-भाजपा की लड़ाई में चीता फंस गया। दिनरात दीवार और रिक्शा पर टकटकी लगाए रखता है। दिन भी ‘राम-राम’ कर कटता है। घर जाने के पहले अफसरों को कुशलक्षेम बतानी पड़ती है। चीता कोई और नहीं बल्कि पुलिस जवान हैं जिनका काम इलाके में बाइक लेकर भ्रमण करना है। जबसे कांग्रेस और भाजपा में पोस्टर वार शुरू हुआ मुलजिम छोड़ पोस्टर पकड़ने में लगा दिया है। पहली बार पुलिस कंट्रोल रूम पर ही पोस्टर लग गए थे। पुलिस आयुक्त की फटकार के बाद आनन-फानन में पोस्टर हटाए गए। अफसरों ने शहर की सभी चीता पार्टी से कहा कि अब एक भी पोस्टर लगने न पाए। मुख्यमंत्री की फोटो वाला पोस्टर किसी भी दीवार या वाहन पर चस्पा पाया गया तो उस थाने की चीता पार्टी सस्पेंड समझें। अफसरों के गुस्से से चीता पार्टी घबराई हुई है। सुबह से शाम तक दीवारों को ही देखती रहती है।
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