मप्र के 10 जिलों का पानी पीने लायक नहीं

भोपाल । मप्र के कुछ इलाकों में पीनेवाला पानी भी जहरीला हो चुका है। राज्य के कुछ जिलों के ग्राउंड वाटर (भूजल) में ज्यादा यूरेनियम मिलने से हड़कंप मच गया। भूजल में रेडियो-ऐक्टिव यूरेनियम के हालिया रिसर्च ने अधिकारियों के साथ-साथ पर्यावरणविदों के लिए भी खतरे की घंटी बजा दी है। केंद्रीय भूजल बोर्ड (सीजीडब्ल्यूबी) ने राज्य के विभिन्न हिस्सों से एकत्र किए गए पानी के नमूनों की जांच कराई थी। इसमें लिमिट से ज्यादा मात्रा में यूरेनियम मिला। यूरेनियम वाला पानी पीने से हड्डियों और किडनी की बीमारी के साथ कैंसर भी हो सकता है।
केंद्रीय भूजल बोर्ड की रिपोर्ट के अनुसार यूरेनियम का सबसे ज्यादा प्रदूषण ग्वालियर के घाटीगांव, सिवनी और बैतूल जिलों में पाया गया है। विशेषज्ञों के अनुसार यूरेनियम मिश्रित पानी लगातार पीने से किडनी, लिवर संबंधी बीमारियों के साथ कैंसर का भी खतरा बढ़ता है। केन्द्रीय भूजल बोर्ड की रिपोर्ट में इस तथ्य का खुलासा हुआ है। बोर्ड ने यूरेनियम प्रदूषण की पूरे भारत में जांच की है। इसके लिए वर्ष 2020 में देश भर के कुओं और ट्यूबवेल आदि के 15 हजार सैंपल लिए गए थे। मप्र के सभी जिलों से 1191 भूजल के सैंपल लिए थे। इन सैंपल की जांच कर हाल ही में रिपोर्ट जारी की गई है।
मप्र के भूजल पर केंद्रीय भूजल बोर्ड ने रिसर्च किया है। राज्य के विभिन्न हिस्सों से एकत्र किए गए पानी के नमूनों का विश्लेषण किया गया। लिमिट से अधिक मात्रा में यूरेनियम पाया गया। पीने योग्य पानी में यूरेनियम की सीमा 30 पार्ट प्रति बिलियन (पीपीबी) है, जबकि मप्र के कुछ हिस्सों में 32-233 पीपीबी की सीमा में यूरेनियम पाया गया। जो स्वास्थ्य को लेकर बहुत चिंता का विषय है। पानी में यूरेनियम की मात्रा अधिक होने से आदमी को हड्डी और किडनी से जुड़ी बीमारियों के साथ कैंसर का भी खतरा रहता है।
पेयजल में यूरेनियम की मात्रा को लेकर भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) ने कोई मानक तय नहीं किया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के स्टैंडर्ड के हिसाब से पीने के पानी में प्रतिलीटर 30 माइक्रोग्राम यूरेनियम हो सकता है। मेडिसिन विशेषज्ञ डॉ. अशोक द्विवेदी के अनुसार, यूरेनियम मिश्रित पानी पीने से किडनी डैमेज हो जाती है। लिवर पर भी इसका असर होने के साथ कैंसर का खतरा बढ़ता है। यूरेनियम के रेडियोएक्टिव प्रभाव की बजाय केमिकल प्रभाव के कारण स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं होती हैं। वैज्ञानिक एसके सिंह के अनुसार, भूजल में यूरेनियम मिलने के प्राकृतिक कारणों में यूरेनियम वाली ग्रेनाइट चट्टानों से यह भूजल में रिसता रहता है। मानव जनित कारणों में खनिज से यूरेनियम निकालकर उसके अवशेष को ऐसे ही छोड़ देना, न्यूक्लियर इंडस्ट्री से रिसाव, फ्लाय ऐश और फॉस्फेट फर्टिलाइजर जिम्मेदार हो सकते हैं।
प्रदेश के जिन जिलों में मानक से ज्यादा यूरेनियम मिले हैं उनमें बालाघाट, बैतूल, छतरपुर, दतिया, ग्वालियर, झाबुआ, पन्ना, रायसेन, सिवनी और शिवपुरी शामिल हैं। ग्वालियर के घाटीगांव में 233.9 पीपीबी यूरेनियम है। वहीं ग्वालियर के टेकनपुर 58.5 पीपीबी, सिवनी  के केवलारी 203.3 पीपीबी, सिवनी  के कुरई 61.4 पीपीबी, बैतूल  के 108.1 पीपीबी, बैतूल  के खेड़ी 39.4 पीपीबी, बालाघाट  केकटंगी 30.7 पीपीबी, छतरपुर  के बिजावर 47.5 पीपीबी, छतरपुर  के कुर्री 39.2 पीपीबी, दतिया  के 96.7 पीपीबी, दतिया  के भाण्डेर 32.9 पीपीबी, दतिया  के इमलिया 51.9 पीपीबी, झाबुआ  के थांदला 75.0 पीपीबी, पन्ना  के शाहनगर 37.1 पीपीबी, रायसेन  के औबेदुल्लागंज 51.3 पीपीबी  और शिवपुरी  के पिछोर 79.1 पीपीबी येरेनियम है।

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