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प्रोजैक्ट ‘शक्ति’ के गलत आंकड़ों से हारी कांग्रेस

नई दिल्ली: 23 मई को 2019 के आम चुनावों के परिणाम घोषित हुए। भाजपा नीत राजग को बड़ा बहुमत हासिल हुआ जबकि आशा के विपरीत कांग्रेस को मिली करारी हार के बाद रात 10:40 बजे के बाद एक ई-मेल अपने बहुप्रचारित डाटा विश्लेषिकी विभाग के सदस्यों के इनबॉक्स में उतरा। ई-मेल के लेखक प्रवीण चक्रवर्ती कांग्रेस के डाटा विभाग के प्रमुख थे। डाटा विभाग की फरवरी 2018 में स्थापना हुई। अंग्रेजी समाचार पत्र के पास इस ई-मेल की एक प्रति है और इसकी समीक्षा की गई है। चक्रवर्ती ने लिखा, ‘‘मैंने दिन का अधिकांश समय यह सोचकर बिताया है कि हम अलग-अलग तरीके से क्या कर सकते थे।

हम सभी विश्लेषण और सर्वेक्षणों और इतने बड़े रुझान को क्यों नहीं पकड़ पाए। मुझे लगता है कि प्रत्येक को आपके योगदान और प्रयास पर वास्तव में गर्व होना चाहिए। हम एक कारण के लिए लड़े और जबकि यह अभी तक पूरा नहीं हुआ है, हम तब तक लड़ाई जारी रखेंगे जब तक कि यह पूरा न हो जाए।’’उस मेल में प्रमुख प्रश्न का उत्तर नहीं था। प्रोजैक्ट शक्ति, कांग्रेस की डाटा परियोजना व मोदी लहर को पढऩे में विफल क्यों रही? समाचार पत्र ने अपनी रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से लिखा है कि डाटा डिपार्टमैंट एक ‘ईको चैम्बर’ बन गया था। वह सिर्फ वही भाषा बोलता था जो कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी सुनना पसंद करते थे। 23 मई को चुनाव नतीजे सामने आने के बाद यह आंकड़ा पूरी तरह से गलत साबित हुआ। डाटा प्रोजैक्ट ‘शक्ति’, जिसे कांग्रेस की मजबूती के लिए तैयार किया गया था, उसी से कांग्रेस पार्टी को सबसे बड़ा धोखा मिला।

‘शक्ति’ क्या है?
आम धारणा है कि शक्ति एक मोबाइल एप्लीकेशन है, जबकि यह सच नहीं है। शक्ति एक प्लेटफॉर्म है, जिसे कांग्रेस पार्टी के कार्यकत्र्ताओं के साथ आंतरिक संवाद स्थापित करने के लिए शुरू किया गया था। इसके जरिए पार्टी कार्यकत्र्ताओं के वोटर आई.डी. और उनके मोबाइल नंबर को ङ्क्षलक किए जाने का उद्देश्य था। इसके जरिए बिखरे संगठन को एकजुट करने की योजना थी। इसकी जिम्मेदारी पूर्व बैंकर प्रवीण चक्रवर्ती को सौंपी गई थी। शक्ति के जरिए पार्टी का शीर्ष नेतृत्व कार्यकत्र्ताओं के साथ सीधा संवाद स्थापित कर सकता था। इसकी शुरूआत पिछले साल हुई थी जब कांग्रेस पार्टी चुनाव की तैयारी कर रही थी।

क्यों फेल हुआ प्रोजैक्ट?
रिपोर्ट तैयार करने के लिए प्रोजैक्ट ‘शक्ति’ से जुड़े लोगों और कांग्रेस नेताओं के साथ बातचीत की गई। रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से लिखा गया है कि डाटा इक_ा करने के लिए जिला स्तर के पदाधिकारियों पर दबाव बनाया गया। उन्हें लगा कि जितने ज्यादा आवेदन करवा देंगे तो टिकट पक्का हो जाएगा। यहीं पर गलती हो गई। प्रोजैक्ट शक्ति के एक सूत्र ने बताया कि तेलंगाना के एक कांग्रेस नेता ने तो शक्ति के मैंबर बनाने के लिए एजैंसी हायर कर ली।

करीब 70 प्रतिशत तक डाटा फर्जी
इस तरह देशभर से गलत डाटा की भरमार हो गई। सूत्रों के मुताबिक शक्ति डाटा में करीब 50-70 प्रतिशत डाटा फर्जी था। सिर्फ 30-35 प्रतिशत ही नॉर्मल कार्यकत्र्ता थे। इसका अंदाजा इसी बात से लग जाता है कि कांग्रेस पब्लिसिटी के लिए तैयार वीडियोज को पहले अपने कार्यकत्र्ताओं को दिखाना चाहती थी। इसके लिए शक्ति के सभी सदस्यों को एस.एम.एस. के जरिए यू-ट्यूब का ङ्क्षलक भेजा गया लेकिन इन वीडियोज में कुल 20-25 हजार व्यूज ही मिले, जबकि शक्ति के सदस्यों का बेस इससे कई गुना ज्यादा था।

‘शक्ति’ की कल्पना मूल रूप से एक आंतरिक संचार मंच के रूप में की गई थी लेकिन एकत्रित आंकड़ों के साथ यह ऑनग्राऊंड सर्वेक्षणों के लिए एक उपकरण बन गया। कांग्रेस नेताओं ने बताया कि इसका इस्तेमाल फीडबैक के लिए किया गया था। इसके साथ दो समस्याएं थीं-‘एक खराब डाटा और दूसरी कई वास्तविक पार्टी कार्यकत्र्ताओं द्वारा ईमानदार प्रतिक्रिया नहीं देना।’ इस सदस्य ने कहा, ‘‘पार्टी का कोई भी प्रतिबद्ध कत्र्ता आपको वास्तविकता नहीं बताएगा।’’ कुछ कांग्रेस सदस्यों ने आरोप लगाया कि यहां तक कि गठबंधनों के फैसले भी शक्ति सर्वेक्षणों से प्रभावित थे। चक्रवर्ती के बारे में एक अन्य अधिकारी ने कहा, ‘‘मुझे लगता है कि जब उन्होंने डाटा संग्रह में काम किया तो उन्होंने अच्छा काम किया। तो क्या हुआ अगर डाटा गलत था? यह (डाटा संग्रह) हमेशा एक गन्दा मामला है। समस्या तब शुरू हुई जब उन्होंने सर्वेक्षण करने के लिए कथित तौर पर इस पर भरोसा किया।’’ चक्रवर्ती का 23 मई का ई-मेल इस प्रकार समाप्त हुआ, ‘‘एक बार जब चीजें सुलझ जाती हैं तो विभाग के लिए एक विजन तैयार करने और योजना बनाने के लिए कांग्रेस अध्यक्ष के साथ मेरी बातचीत होगी। तब तक, यह केवल उचित है कि हम शक्ति पंजीकरण जैसी चीजों को रोक कर रखें। ’’

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