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जानिए कौन थीं नीम करोली बाबा की आध्यात्मिक उत्तराधिकारी चमत्कारी सिद्धि मां….क्या उनके पास भी थीं दिव्य शक्तियां?

नीम करोली बाबा की शिष्या सिद्धि मां, जिन्होंने बाबा की आध्यात्मिक विरासत को ना केवल संभाला बल्कि उसकी ख्याति को और आगे बढ़ाया. बाबा के ब्रह्मलीन होने के बाद बाबा की आध्यात्मिक विरासत को संभालने वाली शख्सियत सिद्धि मां ही थीं. मान्यता है की बाबा ने देहत्याग से पहले सिद्धि मां को अपनी शक्तियां सौंप दी थीं.

कौन थीं सिद्धि मां

सिद्धि मां का जन्म अल्मोड़ा में हुआ था. वह आठ बहनों में सबसे बड़ी थीं. सिद्धि मां का विवाह तुलाराम शाह के साथ हुआ था, जो नीम करोली बाबा के एक समर्पित भक्त थे. सिद्धि मां ने पति की मृत्यु के बाद आध्यात्मिक साधना को अपने जीवन के मार्ग के तौर पर चुना. उनके दो बेटे और एक बेटी भी हैं. बाबा के ब्रह्मलीन होने के बाद उनकी शिष्या सिद्धि मां ही बाबा जी की उत्तराधिकारी बनीं. उन्होंने कैंची धाम की पूरी व्यवस्था को बखूबी निभाया, साथ ही नए आश्रमों का भी निर्माण कराया.

मां के दर्शन से भक्तों के कष्टों का निवारण होता था

भक्तों के लिए सिद्धि मां, देवी मां का स्वरूव थीं. भक्त उन्हें मां या माई कहकर पुकारते थे. वह मंगल और शनिवार को कैंची धाम में भक्तों को दर्शन देती थी. भक्तों का मानना था की मां के दर्शन मात्र से उनके कष्टों का निवारण हो जाता है.

भक्तों को कराती थीं तीर्थ यात्रा

सिद्धि मां प्रत्येक वर्ष भक्तों को तीर्थ यात्रा पर लेकर जाती थीं. भक्तों का कहना है की, सिद्धि मां इस दौरान एक सामान्य महिला की तरह ही उनके साथ तीर्थ करती थीं और उन्हें आध्यात्मिक दिशा दिखाने में उनकी सहायता करती थीं.

सिद्धि मां ने संभाली बाबा की अध्यात्मिक विरासत

1973 में बाबा के ब्रह्मलीन होने के बाद सिद्धि मां ने 1980 में ऋषिकेश का आश्रम बनवाया, और भी कई निर्माण कार्य करवाये. बाबा नीम करोली के देश-विदेश में 108 आश्रम हैं. बाबा के जाने के बाद, सिद्धि मां ने उनकी आध्यात्मिक विरासत को आगे ले जाने का काम किया.

नीम करोली बाबा सिद्धि मां को कात्यायनी कहते थे

नीम करोली बाबा सिद्धि मां को कात्यायनी का रूप मानते थे, और उन्हें कात्यायनी कह कर पुकारते थे. नीम करोली बाबा की मुलाकात सिद्धि मां से हनुमानगढ़ी मंदिर के निर्माण कार्य के दौरान हुई थी, और उन्होंने इसी वक्त कह दिया था कि सामने से कात्यायनी आ रही है. वह सिद्धि मां को मां कात्यायनी का अवतार मानते थे.

हमेशा भजन करती थीं सिद्धि मां

सिद्धि मां अपने भक्तों को हमेशा भजन गाकर सुनाती थीं. उनका एक भजन बहुत ही प्रसिद्ध था सुमिरन कर ले मेरे मन, जिसे बाबा भी बहुत पसंद किया करते थे.

2017 में सिद्धि मां ने ली आखिरी सांस

92 साल की उम्र में, 28 दिसंबर 2017 को सिद्धि मां ब्रह्मलीन हो गईं, उनकी मृत्यु के बाद उनकी एक भव्य प्रतिमा और एक पूजा कक्ष, कैंची धाम में उनके भक्तों के लिए बनवाया गया. 28 दिसंबर को हर साल उनकी पुण्यतिथि पर कैंची धाम में विशाल भंडारे का आयोजन किया जाता है. सिद्धि मां के भक्त इस दिन कैंची धाम में जमा होते हैं.

सिद्धि मां के लिए नीम करोली बाबा हमेशा कहा करते थे, कि मां तू जहां रहेगी वहां मंगल ही होगा. सिद्धि मां को दयालुता की मूर्ति माना जाता था. माना जाता था कि उन्हें बाबा की अलौकिक शक्तियां प्राप्त हैं. उनमें भक्तों का दुख दूर करने की अलौकिक शक्ति थी. सिद्धि मां समुदाय के आधार पर कभी भेदभाव नहीं करती थीं, और एकता और अखंडता पर विश्वास रखती थीं. सिद्धि मां का जीवन भक्ति, दया और आध्यात्मिकता का संपूर्ण मिश्रण हैं.

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