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दिल्ली विधानसभा चुनाव: अब पछताने का क्या फायदा?

नई दिल्ली: ‘अब पछताए क्या होत जब चिडिय़ा चुग गई खेत’, यह कहावत इन दिनों दिल्ली भाजपा पर सटीक बैठती है क्योंकि पार्टी की सोच के विपरीत अरविंद केजरीवाल ने उसके सपनों पर पानी फेर दिया। हाल ही में गृह मंत्री अमित शाह ने स्वीकार किया कि दिल्ली में चुनाव प्रचार के दौरान कुछ नेताओं के बयान भाजपा के लिए हानिकारक साबित हुए। हार के कारणों पर अब कितना ही चिंतन होता रहे लेकिन भाजपा के हाथ से बाजी निकल गई। अब पछताने से कोई फायदा नहीं है।

भाजपा में चर्चा है कि जिस समय केन्द्रीय राज्य मंत्री अनुराग ठाकुर और सांसद परवेश साहिब सिंबह वर्मा के प्रचार पर चुनाव आयोग ने पाबंदी लगाई थी उसी समय गृह मंत्री अमित शाह या राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा या दूसरे वरिष्ठ भाजपा नेता इन बयानों की निंदा कर देते तो नुक्सान से बचा जा सकता था। भड़काऊ बयान और एक के बाद एक नेता द्वारा हर जनसभा में शाहीन बाग का जिक्र इस कदर गर्मा गया कि न केवल मुस्लिम बहुल विधानसभा क्षेत्रों में बल्कि हिंदू बहुल क्षेत्रों में भी जनता एक सूत्र में संगठित नहीं हो सकी। भले ही इस परिणाम के बाद पार्टी में हार के कारणों को तलाश करने के लिए बैठकों का दौर चलता रहे लेकिन यह साफ हो गया कि इन बयानों से भाजपा के पक्ष में मतदान करने वाले भी ऐन मौके पर पीछे हो गए। हालांकि पार्टी में एक मत यह भी है कि इन भाषणों और एकजुटता की वजह से ही पार्टी को 3 से बढ़कर 8 सीटें मिली हैं।

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