बिहार: उपचुनाव के चक्रव्यूह से नहीं निकल पाए तेजस्वी तो 2025 में हो जाएगा खेल?

बिहार में विधानसभा की 4 सीटों पर हो रहे उपचुनाव में सबसे बड़ी अग्निपरीक्षा तेजस्वी यादव की ही मानी जा रही है. इसकी दो वजहें हैं. पहली वजह रिक्त हुई 4 में से 2 सीटें राजद की है. दूसरी वजह यह उपचुनाव राज्य में होने वाले विधानसभा चुनाव से ठीक एक साल पहले कराया जा रहा है.

बिहार में हो रहे 4 सीटों के इस उपचुनाव को 2025 का सेमीफाइनल भी माना जा रहा है. अक्टूबर 2025 में बिहार की 243 विधानसभा सीटों पर चुनाव प्रस्तावित है.

4 सीटों पर उपचुनाव, इनमें 2 तेजस्वी की सीट

बिहार में गया की बेलागंज और इमामगंज, भोजपुर की तरारी और कैमूर की रामगढ़ सीट पर उपचुनाव कराए जा रहे हैं. बेलागंज और रामगढ़ सीट पर 2020 में आरजेडी को जीत मिली थी. रामगढ़ सीट से प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह के बेटे सुधाकर सिंह ने जीत हासिल की थी.

इसी तरह बेलागंज पर सुरेंद्र यादव को जीत मिली थी. सुधाकर और सुरेंद्र दोनों आरजेडी के कद्दावर नेता माने जाते हैं. वहीं तरारी सीट माले के खाते में आई थी. इमामगंज पर जीतन राम मांझी ने जीत हासिल की थी. इन 4 में से 3 सीटों पर आरजेडी चुनाव लड़ रही है. एक सीट तरारी माले को दी गई है.

उपचुनाव के चक्रव्यूह में फंस गए तेजस्वी?

2020 से लेकर अब तक जितने भी उपचुनाव हुए हैं, वहां तेजस्वी की पार्टी हिट नहीं हो पाई है. चुनाव आयोग के मुताबिक पिछले 4 साल में बिहार में 5 सीटों पर उपचुनाव कराए गए. इनमें कुशेश्वरस्थान, तारापुर, बोचहां, कुढ़नी और रूपौली की सीट शामिल हैं.

बोचहां को छोड़ दिया जाए तो बाकी की 4 सीटों पर आरजेडी बुरी तरह हार गई. कुढ़नी तो आरजेडी की सीट थी, उसे भी तेजस्वी नहीं जीत पाए. इसी तरह रूपौली में आरजेडी की उम्मीदवार तीसरे नंबर पर पहुंच गई. एक तरफ उपचुनाव को लेकर आरजेडी का ट्रैक रिकॉर्ड खराब है तो वहीं दूसरी तरफ आरजेडी की इस बार मजबूत घेराबंदी हो गई है.

एनडीए गठबंधन जहां आरजेडी से सीटें झटकने की तैयारी में है. वहीं प्रशांत किशोर की पार्टी भी मैदान में उतर गई है. पीके उपचुनाव को रूपौली की तरह तीसरे धुरी में मोड़ना चाहते हैं.

रूपौली में जनता ने जेडीयू और आरजेडी को छोड़ निर्दलीय उम्मीदवार को विजयश्री का माला पहना दिया था. 4 सीटों के उपचुनाव पर अगर ऐसा होता है तो इसका सीधा झटका आरजेडी को लगेगा.

जीत जरूरी, नहीं तो बिगड़ेगा 2025 का खेल

उपचुनाव के चक्रव्यूह में फंसे तेजस्वी यादव के लिए यह जीत जरूरी है. नहीं तो उपचुनाव में उनका खेल खराब हो सकता है. कैसे, आइए इसे 3 प्वॉइट्स में समझते हैं…

1. बेलागंज सीट पर आरजेडी ने यादव को उतारा है. जेडीयू की तरफ से भी यादव को टिकट दिया गया है. जन सुराज ने मुस्लिम उम्मीदवार को उतार कर खेल खराब कर दिया है. अगर बेलागंज में मुस्लिम छिटकते हैं तो 2025 में आरजेडी की मुश्किलें बढ़ सकती है.

बिहार में मुसलमानों को आरजेडी का कोर वोटर्स माना जाता है, लेकिन पीके हिस्सेदारी का मुद्दा उठाकर मुस्लिमों को साधना चाहते हैं. बिहार में मुसलमानों की आबादी 17 प्रतिशत है और सीमांचल-मिथिलांचल के कई जिलों में सियासी तौर पर प्रभावी हैं.

2. रामगढ़ में जगदानंद सिंह और बेलागंज में सुरेंद्र यादव की प्रतिष्ठा दांव पर है. दोनों ही बड़े नेता माने जाते हैं. अगर इन सीटों पर खेल होता है तो 2025 से पहले आरजेडी के बड़े नेताओं में सियासी डर बनेगा.

पिछले 6 महीने में पार्टी से राजवल्लभ यादव, गुलाब यादव, देवेंद्र यादव जैसे बड़े नेता छिटक चुके हैं.

3. जन सुराज अगर इन 4 सीटों पर ठीक-ठाक वोट पा लेती है तो विधानसभा चुनाव से पहले खुद को बड़ा विकल्प बनाकर पेश करेगी. यह तेजस्वी के लिए ही नुकसान साबित होगा. अभी 4 दलों के साथ तेजस्वी विपक्ष के सबसे बड़े नेता हैं.

दूसरी तरफ आरजेडी के परफॉर्मेंस को एनडीए भी मुद्दा बनाएगी.

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