आतंकियों की गोलियों से छलनी था सीना फिर भी डटा रहा उत्तराखंड का लाल… शहीद कैप्टन दीपक सिंह की कहानी

स्वतंत्रता दिवस से एक दिन पहले जम्मू कश्मीर के डोडा में हुए आतंकी हमले में कैप्टन दीपक सिंह शहीद हो गए. उनके सीने पर तीन गोलियां लगी थीं. घायल होने के बाद भी वह अपनी टीम को गाइड करते रहे. उन्होंने अपनी जान की परवाह किए बगैर एक आतंकी को मार गिराया. हालत गंभीर होने पर उन्हें सेना अपस्ताल में भर्ती किया गया, जहां इलाज के दौरान उनका निधन हो गया.

कैप्टन दीपक सिंह को बचपन से देश सेवा का जुनून सवार था. उन्हें हॉकी खेलना पसंद था और उन्होंने कई मेडल भी जीते. कैप्टन दीपक सिंह के देहरादून स्थित आवास पर बड़ी संख्या में लोग उन्हें श्रद्धांजलि देने पहुंच रहे हैं. परिवार के लोगों का रो-रो कर बुरा हाल है. शहीद कैप्टन दीपक सिंह की मां पर गमों का पहाड़ टूट पड़ा है. आतंकी हमले में शहीद हुए कैप्टन दीपक सिंह 4 साल पहले 2020 में सेना में भर्ती हुए थे. वह 24 साल के थे.

मई में बहन की शादी में हुए शामिल

बुधवार को जम्मू कश्मीर के डोडा में आतंकी हमले के दौरान कैप्टन दीपक सिंह गोली लगने से घायल हो गए. इलाज के लिए इन्हें आर्मी अस्पताल में भर्ती कराया गया, लेकिन डॉक्टर उन्हें बचा नहीं सके. शहीद कैप्टन दीपक सिंह दो बहनों के इकलौते भाई थे. मई में उनकी छोटी बहन की शादी थी जिसमे वो शामिल हुए थे. तकरीबन 2 महीने उन्होंने घर पर ही छुट्टी बिताई थी. घर से छुट्टी खत्म होने के बाद वह जम्मू कश्मीर में अपनी ड्यूटी पर तैनात थे.

पिता को बेटे की शहादत पर गर्व

कैप्टन दीपक सिंह के पिता महेश सिंह को अपने बेटे की शहादत पर गर्व है. वह उत्तराखंड पुलिस मुख्यालय में तैनात थे और कुछ समय पहले ही उन्होंने बीआरएस लिया था. उनका कहना है कि जब से उन्हें बेटे की शहादत की खबर मिली है तब से आंख से एक आंसू नहीं निकलने दिया. वह कहते हैं कि बेटे को फौज में जाने का बहुत शौक था. आज उसकी इच्छा पूरी हो गई. पर उन्हें अफसोस सिर्फ इस बात का है कि उनका बेटा कैप्टन दीपक सिंह उनसे पहले दुनिया से विदा हो गया. वह बताते हैं कि जब वह देहरादून पुलिस लाइन में सरकारी घर में रहते थे, उस वक्त से दीपक पुलिस लाइन के ग्राउंड में सेना में जाने की हर रोज प्रैक्टिस करता था.

मुठभेड़ की खबरों से होता है मन दुखी

वह कहते हैं कि मुझे अपने बेटे की देश प्रेम की भावना देखकर काफी गर्व होता था. उन्होंने बताया कि वह पढ़ाई में भी बहुत होशियार था इसलिए उसका एसएसबी में सिलेक्शन हुआ और उसने आर्मी में जाने का फैसला लिया. उन्होंने बताया कि हर महीने उत्तराखंड से कोई ना कोई सैनिक शहीद हो रहा है. सरकार को इसके बारे में गंभीरता से विचार करना चाहिए. उन्होंने बताया कि जब भी जम्मू कश्मीर में कोई मुठभेड़ होती है तो टीवी में उसकी खबर देखकर मन दुखी होने लगता है. ऐसा लगता है कि फिर कोई हमारा बेटा शहीद ना हो जाए. वह कहते हैं कि टीवी में इस तरह की खबरें जब चलती है तो वह पत्नी के आने से पहले ही उसे बंद कर देते हैं.

Comments are closed, but trackbacks and pingbacks are open.