भाजपा के दांव से मुश्किल में कांग्रेस, प्रत्याशी के लिए दूसरे जिलों तक में खोज शुरू

मुरैना। लोकसभा चुनाव की तारीख अभी तय नहीं हुई, लेकिन भाजपा ने मुरैना-श्योपुर लोकसभा सीट से पूर्व विधायक शिवमंगल सिंह तोमर को टिकट देकर अपने पत्ते खोल दिए हैं।

भाजपा के इस दाव से कांग्रेस की मुश्किलों में इजाफा हो गया है। लगातार सात चुनाव हार चुकी कांग्रेस इस बार एक अदद प्रत्याशी की तलाश में दूसरे जिलों तक में खोज-परख कर रही है।

देखना यह दिलचस्प होगा, कि अब कांग्रेस भाजपा के इस गढ़ में सेंध लगाने के लिए किस स्थान के किस नेता पर दांव लगाएगी। गौरतलब है, कि मुरैना-श्योपुर लोकसभा सीट पर क्षत्रिय वोट अधिक है और यहां से दो बार सांसद रहे नरेंद्र सिंह तोमर के विधायक व विधानसभा अध्यक्ष बन जाने के बाद कांग्रेस में क्षत्रिय नेता को टिकट देने की चर्चाएं जोरों पर थीं।
लेकिन भाजपा ने पहले ही क्षत्रिय नेता शिवमंगल सिंह तोमर (दिमनी के पूर्व विधायक) को टिकट देकर कांग्रेस की राह मुश्किल कर दी है। भाजपा ने तो लोकसभा चुनाव की तैयारी प्रत्याशी के बिना ही तब कर दी थी।
जब लोकसभा चुनाव कार्यालय का फीता काट दिया था। दूसरी ओर कांग्रेस की वर्तमान स्थिति ऐसी है, कि उन्हें मुरैना से बाहर दूसरे जिलों तक में ऐसा प्रत्याशी खोजना पड़ रहा है, जो जीत सुनिश्चित कर सके।

इनमें भिंड जिले से पूर्व विधायक राकेश चौधरी, पूर्व नेता प्रतिपक्ष डॉ. गोविंद सिंह और ग्वालियर के पूर्व विधायक व पूर्व मंत्री रहे बालेंदु शुक्ल जैसे कई नेताओं के नाम चल रहे हैं।
दीगर जिलों के नेताओं के अलावा कांग्रेस में ऐसे नेताओं की भी चर्चा है, जो कुछ समय पहले तक भाजपा में सक्रिय थे, इनमें भाजपा से सुमावली के विधायक रहे सत्यपाल उर्फ नीटू सिकरवार और वैश्य समाज में अंचल के सबसे बड़े नेता केएस आयल मिल के चेयरमैन रमेश चंद्र गर्ग जो भाजपा एवं नरेंद्र सिंह तोमर के करीबी रहे हैं, वह भी टिकट के लिए कांग्रेस का दरवाजा खटखटा रहे हैं।

कांग्रेस का टिकट किसे मिलेगा यह तो सूची आने पर तय होगा। यदि दूसरे जिले या फिर चुनाव लड़ने के लिए कांग्रेस में आए किसी नेता को टिकट देने के बाद कांग्रेस में अंतर्कलह और भितरघात की संभावनाएं पूरी-पूरी रहेंगी और यह नाराजगी कितना फायदा या नुकसान पहुंचाएगी वह चुनाव परिणामों के अलावा कोई और नहीं बता सकता।

इसलिए कांग्रेस मुसीबत में

क्योंकि 33 साल से हार रही मुरैना-श्योपुर लोकसभा सीट भाजपा का गढ़ है। बीते 33 साल से यहां भाजपा अजेय है, इस सवा तीन दशक में सात बार लोकसभा चुनाव हुए और सातों बाद कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा है।
इस सीट पर कांग्रेस ने अंतिम बार 1991 में जीत का मुंह देखा था, तब कांग्रेस के बारेलाल जाटव ने सांसद का चुनाव जीता था। इसके बाद कांग्रेस का हर प्रयोग फेल रहा है।
आजादी के बाद इस सीट पर कुल 17 चुनाव हुए हैं, उनमें 10 जनसंघ-भाजपा के नाम है, छह चुनाव कांग्रेस ने जीते हैं और एक बार निर्दलीय प्रत्याशी आत्मदास को जनता ने सांसद चुना था।

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