सुरक्षा, नौकरी और संरक्षण… लद्दाख में आर्टिकल 371 लागू हुआ तो क्या-क्या बदलेगा? आसान भाष में समझें

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कश्मीर दौरे से पहले ही एक चर्चा यह भी शुरू हो चुकी है कि लद्दाख में अनुच्छेद 371 लागू किया जा सकता है. इसको लेकर लेह और लद्दाख के नेताओं और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के बीच एक बैठक हो चुकी है, जिसमें उन्होंने आर्टिकल 371 के जरिए इस केंद्र शासित क्षेत्र के स्थानीय लोगों के लिए विशेष प्रावधान करने का आश्वासन दिया है.

अनुच्छेद 370 की ही तरह अनुच्छेद 371 भी भारतीय संविधान में शामिल है. आइए जान लेते हैं कि आर्टिकल 371 आखिर है क्या और इसके लागू होने से लद्दाख में क्या बदलाव होंगे.

आर्टिकल 371 में होता है किसी राज्य के लिए विशेष प्रावधान

वैसे लद्दाख के लोग कह रहे हैं कि उनकी मांगों को संविधान के छठे शेड्यूल में शामिल किया जाए, जिससे केंद्र सरकार ने इनकार कर दिया है. इसकी जगह पर आर्टिकल 371 के जरिए लद्दाख के लिए विशेष प्रावधान किए जाने का भरोसा दिलाया है. दरअसल, जिस तरह से जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश के लिए विधायिका की व्यवस्था है, वैसा अभी लद्दाख के लिए नहीं है.

यह बिना विधायिका के ही केंद्र शासित प्रदेश है, इसीलिए वहां धरना-प्रदर्शन भी किए जा रहे हैं. इसलिए वहां के नेताओं के साथ बैठक में केंद्र सरकार ने साफ किया है कि क्षेत्र के लोगों की आशंकाओं का समाधान आर्टिकल 371 में किए गए विशेष प्रावधानों के जरिए किया जाएगा.

स्थानीय विरासत और हितों का होता संरक्षण

आर्टिकल 371 के जरिए देश के अलग-अलग 11 राज्यों के लिए विशेष प्रावधान किए गए हैं, जिनमें उत्तर-पूर्व के भी छह राज्य शामिल हैं. वहीं, संविधान के आर्टिकल 244 के छठवें शेड्यूल के अनुसार किसी राज्य में स्वायत्तशासी प्रशासन की स्थापना की जा सकती है, जिसके पास विधायिका, न्यायिक और प्रशासनिक स्वात्तता होती है. इसी की मांग लद्दाख के लोग कर रहे हैं पर केंद्र सरकार दूसरे राज्यों के लिए आर्टिकल 371 के तहत किए गए विशेष प्रावधानों की तर्ज पर वहां के लिए भी विशेष प्रावधान कर सकती है.

इसके जरिए लद्दाख की स्थानीय विरासत और स्थानीय लोगों के अधिकारों को संरक्षित किया जा सकेगा. इसको अलग-अलग राज्यों के लिए आर्टिकल 371 के तहत किए गए प्रावधानों से और आसानी से समझा जा सकता है.

इन राज्यों के लिए होता है विशेष प्रावधान

आर्टिकल 371 (ए) में नगालैंड के लिए खास प्रावधान हैं कि वहां की धार्मिक, सामाजिक परंपराओं, पारंपरिक कानून, यहां तक कि नगा कानून के अनुसार दीवानी-फौजदारी से जुड़े फैसलों और जमीन व अन्य संसाधनों के मालिकाना और ट्रांसफर के संदर्भ में संसद की कोई कार्यवाही लागू नहीं होती है. राज्य की विधानसभा से पारित होने के बाद जरूर इसे लागू किया जा सकता है. इस अनुच्छेद के मुताबिक नगालैंड में जमीन और संसाधन सरकार के नहीं, बल्कि स्थानीय लोगों के हैं.

इसी तरह से अनुच्छेद 371 (जी) में मिजोरम के लिए खास प्रावधान किए गए हैं. इसमें भी वही कहा गया है कि मिजो लोगों की परंपराओं और कानूनी फैसलों पर संसद की कोई कार्यवाही तब तक लागू नहीं होगी, जब तक कि राज्य विधानसभा में इसका प्रस्ताव न पारित हो जाए. अनुच्छेद 371 (बी) असम के लिए और अनुच्छेद 371 (सी) मणिपुर के लिए विशेष प्रावधान करता है.

इसी तरह से अनुच्छेद 371 (एफ) और 371 (एच) सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश के लिए विशेष प्रावधान उपलब्ध कराते हैं. आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और गोवा के लिए भी इसी अनुच्छेद के जरिए विभिन्न विशेष प्रावधान किए जाते हैं. अनुच्छेद 371 ही राष्ट्रपति को महाराष्ट्र के विदर्भ और मराठवाड़ा क्षेत्रों के साथ ही गुजरात के सौराष्ट्र, कच्छ के लिए अलग विकास बोर्डों के गठन की शक्ति देता है.

लद्दाख के लोगों के हितों को मिलेगी सुरक्षा

कुल मिलाकर इस अनुच्छेद के जरिए केंद्र सरकार किसी राज्य की खास जरूरतों की पूर्ति करता है और वहां के लोगों के हितों की रक्षा करती है. अगर लद्दाख में अनुच्छेद 371 लागू होता है तो जाहिर है कि स्थानीय हितों को बढ़ावा मिलेगा. स्थानीय नौकरियों में स्थानीय लोगों को 80 फीसदी तक आरक्षण देने तक का प्रावधान किया जा सकता है. केंद्र सरकार क्षेत्र के विकास के लिए अलग से बजट का प्रावधान कर सकेगी. इसके जरिए केंद्र सरकार लद्दाख की संस्कृति, भाषा और भूमि के साथ ही स्थानीय परंपराओं को भी संरक्षण प्रदान कर सकेगी.

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