देहरादूनः उत्तराखंड विधानसभा में बुधवार को बहुचर्चित समान नागरिक संहिता (यूसीसी) विधेयक ध्वनि मत से पारित हो गया। समान नागरिक संहिता विधेयक, उत्तराखंड 2024 को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने मंगलवार को सदन के पटल पर रखा था, जिस पर दो दिनों तक लंबी चर्चा हुई। इस विधेयक को पारित करवाने के लिए विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया गया।
विधेयक पर चर्चा के आखिर में मुख्यमंत्री ने इस विधेयक को ऐतिहासिक बताते हुए सभी सदस्यों से इस मिलकर इसे पारित करवाने का अनुरोध किया। विधेयक को ध्वनि मत से पारित किया गया। विधेयक के पारित होने के दौरान सदन में ‘जय श्रीराम’ और ‘भारत माता की जय’ के जमकर नारे लगे। धामी ने कहा, ‘‘यह विधेयक प्रधानमंत्री जी (नरेन्द्र मोदी) द्वारा देश को विकसित, संगठित, समरस और आत्मनिर्भर राष्ट्र बनाने के लिए किए जा रहे महान यज्ञ में हमारे प्रदेश द्वारा अर्पित की गई एक आहुति मात्र है।” उन्होंने कहा कि यूसीसी विधेयक के तहत जाति, धर्म, क्षेत्र व लिंग के आधार पर भेद करने वाले व्यक्तिगत नागरिक मामलों से संबंधित सभी कानूनों में एकरूपता लाने का प्रयास किया गया है। उत्तराखंड विधानसभा आजाद भारत के इतिहास में समान नागरिक संहिता का विधेयक पारित करने वाली पहली विधानसभा बन गई है। अब अन्य सभी विधिक प्रक्रिया और औपचारिकताएं पूरी की जाएंगी, जिसके बाद उत्तराखंड यूसीसी लागू करने वाला देश का पहला राज्य बन जाएगा।
विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूरी ने बताया कि यह विधेयक अब राज्यपाल के जरिए राष्ट्रपति के पास उनकी मंजूरी के लिए भेजा जाएगा, जिसके बाद ही यह कानून बनेगा। विधेयक में प्रदेश में रहने वाले सभी धर्म-समुदायों के नागरिकों के लिए विवाह, संपत्ति, गुजारा भत्ता और विरासत के लिए एक समान कानून का प्रावधान है। हालांकि, अनुसूचित जनजातियों को इस विधेयक की परिधि से बाहर रखा गया है। यूसीसी विधेयक में महिलाओं और बच्चों के अधिकारों को संरक्षित करते हुए बाल विवाह, बहु विवाह, हलाला, इद्दत जैसी सामाजिक कुप्रथाओं पर रोक लगाने का प्रावधान है। इसके तहत विवाह का पंजीकरण अनिवार्य किया गया है और ऐसा नहीं करने पर सरकारी सुविधाओं से वंचित करने का प्रावधान है। पति-पत्नी के जीवित रहते दूसरे विवाह को पूर्णतः प्रतिबंधित किया गया है जबकि सभी धर्मों में विवाह की न्यूनतम उम्र लड़कों के लिए 21 वर्ष और लड़कियों के लिए 18 वर्ष निर्धारित की गई है। वैवाहिक दंपत्ति में यदि कोई एक व्यक्ति बिना दूसरे व्यक्ति की सहमति के अपना धर्म परिवर्तन करता है तो दूसरे व्यक्ति को उस व्यक्ति से तलाक लेने व गुजारा भत्ता लेने का पूरा अधिकार होगा। पति-पत्नी के तलाक या घरेलू झगड़े के समय पांच वर्ष तक के बच्चे की अभिरक्षा उसकी माता के पास ही रहेगी। सभी धर्मों में पति-पत्नी को तलाक लेने का समान अधिकार होगा। बेटा और बेटी का संपत्ति में समान अधिकार होगा। संपत्ति में अधिकार के लिए वैवाहिक और लिव-इन से पैदा बच्चों में भेदभाव को समाप्त करते हुए हर बच्चे को ‘वैध’ बच्चा माना जाएगा। लिव-इन का पंजीकरण भी अनिवार्य होगा।
वहीं इससे पहले, विधेयक पर चर्चा में भाग लेते हुए कांग्रेस तथा बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के सदस्यों ने विधेयक के कुछ प्रावधानों पर आपत्ति व्यक्त करते हुए उसे सदन की प्रवर समिति को सौंपने की मांग की थी। बसपा विधायक मोहम्मद शहजाद ने इस मुददे पर सदन में एक प्रस्ताव भी पेश किया था । हालांकि, यह प्रस्ताव सदन में ध्वनिमत से खारिज हो गया । यूसीसी पर अधिनियम बनाकर उसे प्रदेश में लागू करना 2022 में हुए विधानसभा चुनावों के दौरान भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) द्वारा जनता से किए गए प्रमुख वादों में से एक था। वर्ष 2000 में अस्तित्व में आए उत्तराखंड में लगातार दूसरी बार जीत दर्ज कर इतिहास रचने के बाद भाजपा ने मार्च 2022 में सत्ता संभालने के साथ ही मंत्रिमंडल की पहली बैठक में यूसीसी का मसौदा तैयार करने के लिए विशेषज्ञ समिति के गठन को मंजूरी दे दी थी।
उच्चतम न्यायालय की सेवानिवृत्त न्यायाधीश रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता में गठित पांच सदस्यीय समिति ने व्यापक जन संवाद के बाद यूसीसी के मसौदे को तैयार कर दो फरवरी को उसे राज्य सरकार को सौंपा था। विधेयक पारित होने के बाद प्रदेश भाजपा मुख्यालय में मुख्यमंत्री का स्वागत पटाखों से किया गया।
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