भोपाल(राज्य ब्यूरो) मध्य प्रदेश में चीतों का दूसरा ठिकाना गांधीसागर अभयारण्य तैयार करने में अब देर लग सकती है। दरअसल, नीमच जिले में अभयारण्य की सीमा से सटे बूझबेसला गांव के लोगों ने अभयारण्य की सीमा पर जाली लगाने का विरोध किया है। ग्रामीणों का कहना है कि इस क्षेत्र में उनके मवेशी चरने जाते हैं। जाली लगी, तो मवेशी कहां चरेंगे। इस जगह को खाली कराने के लिए क्षेत्र का वन अमला पहुंचा, तो ग्रामीणों ने पथराव किया।
इसके बाद वनकर्मियों ने अतिक्रमण हटाने के लिए दोबारा जाने से मना कर दिया है। बता दें कि कूनो नेशनल पार्क से कुछ चीतों को शिफ्ट करने के लिए गांधीसागर को सितंबर या अक्टूबर तक तैयार करने का लक्ष्य तय किया गया है। मंदसौर और नीमच जिलों में फैले गांधीसागर अभयारण्य के एक ओर गांधीसागर बांध का पानी है, तो तीन ओर से चैनलिंक जाली लगाई जानी है।
ताकि यहां छोड़े जाने वाले चीते बाहर निकलकर गांवों में न घुसें। भारतीय वन्यजीव संस्थान देहरादून के विशेषज्ञों के अध्ययन में अभयारण्य का वातावरण चीतों के अनुकूल पाया गया है। इसलिए जब कूनो से कुछ चीते शिफ्ट करने की बात आई, तो गांधीसागर की फेंसिंग शुरू कर दी गई।
इसके लिए कैंपा फंड (प्रतिपूरक वनरोपण निधि प्रबंधन और योजना प्राधिकरण) से 20 करोड़ रुपये दिए गए हैं। एक माह पहले फेंसिंग शुरू हुई और ठेकेदार के मजदूर बेझबेसला गांव के पास फेंसिंग के खंभे लगाने के लिए गड्ढे खोद रहे थे, तभी ग्रामीणों ने काम रुकवा दिया। उनके पक्ष में स्थानीय जनप्रतिनिधि भी मैदान में उतर आए। तब से फेंसिंग का काम बंद है। मामले में नीमच के डीएफओ एसके अटोदे से बात करने की कोशिश की गई, पर उनका फोन नहीं उठा।
आनन-फानन में शुरू हुआ काम
चीतों के लिए प्रदेश में कूनो, गांधीसागर और नौरादेही को चुना गया है। राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण(एनटीसीए) के अधिकारी चाहते तो अफ्रीकी देशों से चीता लाने से पहले गांधीसागर को तैयार कर सकते थे, पर अधिकारी तब जागे, जब प्रदेश के पूर्व मुख्य वन्यप्राणी अभिरक्षक जेएस चौहान ने किसी अनहोनी के डर से कुछ चीतों को तत्काल शिफ्ट कराने के लिए पत्र लिखा था। इसके बाद एनटीसीए, चीता निगरानी समिति और केंद्रीय वनमंत्री भूपेंद्र यादव ने साफ कहा कि चीते प्रदेश से बाहर नहीं जाएंगे। तब कहीं फिर गांधीसागर की सुध ली गई।
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