संगठन का चोला ओढ़कर जातिवाद का विष

जबलपुर। पार्टी का चोला ओढ़कर एक कद्दावर नेता नागरिकों में जातिवाद का विष घोल रहे हैं। वे बीजेपी में हैं लेकिन जातिवाद के मुद्दे काे लेकर कई दलों में सेंध लगा चुके हैं। इंटरनेट मीडिया पर उनका ग्रुप प्रदेश स्तर पर सक्रिय है। जिम्मेदार पदाधिकारी का यह वर्ग भेद संगठन के लिए गले की हड्डी बनने लगा है। क्योंकि वे जिले की चार विधानसभा सीटों पर अपने वर्ग के प्रत्याशियों के लिए दावेदारी कर रहे हैं। संगठन का मूल राष्ट्रवाद है परंतु नेताजी का लक्ष्य जातिवाद हो गया है। जिस वर्ग की वे बात कर रहे हैं जबलपुर में उसकी आबादी 52.5 प्रतिशत बता रहे हैं। लगभग आधी आबादी तो विधानभा सीटों में भी 50 प्रतिशत हिस्सेदारी की वकालत करने में जुटे हैं। पर्दे के पीछे से नेताजी का यह खेल संगठन को तितर बितर न कर दे। जातिवाद का विष पार्टी को किस दिशा में ले जाएगा यह तो समय बताएगा।

वीसी से पहले अस्पताल जाने की सलाह

कलेक्टर कार्यालय में एनअाइसी कक्ष है। जहां अधिकारी अक्सर वीडियो कांफ्रेंसिंग ‘वीसी’ करते हैं। कुछ दिन पूर्व यहां वीसी चल रही थी। वीसी में कुछ ऐसे अधिकारी भी शामिल थे, जो डायबिटीज के मरीज हैं। बीमारी की वजह से उन्हें बार-बार लघुशंका जाना पड़ता है। वीसी के दौरान एक अधिकारी लघुशंका के लिए कक्ष से बाहर निकले और कुछ देर बाद पेट दबाए वापस लौट आए। तब तक दूसरे अधिकारी लघुशंका के लिए बाहर निकले और वे भी पेट दबाए कक्ष में पहुंचे। तीसरे अधिकारी के साथ भी यही हुआ। अब एनआइसी कक्ष में बैठे तीनों अधिकारी एक दूसरे का मुंह ताकने लगे। वीसी समाप्त होने के बाद तीनों तेजी से बाहर निकले और शौचालय की तलाश करने लगे। तभी पता चला कि एनआइसी कक्ष के शौचालय पर ताला लगा दिया जाता है। एक अधिकारी ने चुटकी ली, बोले कि वीसी में आने से पहले किसी अस्पताल जाकर कैथेटर लगवा लेना चाहिए।

10 हजार और दारू की चार बोतल

शराब कंपनी के गुर्गों और पुलिस की मिलीभगत का जीवंत उदाहरण सामने आया। पीड़ित दो लड़कों को 10 हजार रुपये और चार बोतल शराब देकर इस मिलीभगत की कीमत चुकानी पड़ी। हुआ यूं कि दोनों लड़के लार्डगंज थाना क्षेत्र स्थित दुकान में शराब खरीदने पहुंचे। छह बोतल शराब खरीदी, उन्हें कच्चा बिल थमा दिया गया। दोनों लड़के वहां से निकलने की तैयारी कर रहे थे तभी शराब कंपनी के गुर्गे पहुंच गए। शराब तस्कर होने का आरोप लगाते हुए दोनों लड़कों को पकड़कर माढ़ोताल थाना ले गए। लड़कों के खिलाफ एफआइआर दर्ज कराने की कोशिश की। मामले ने तूल पकड़ा तो कंपनी के गुर्गों व दोनों लड़कों को वहां से भगा दिया गया। जिसके बाद लड़कों को दूसरे थाने में ले जाया गया। एफआइआर की घुड़की यहां भी दी गई। जिसके बाद शराब की चार बोतल व 10 हजार देकर गुर्गों व पुलिस के चंगुल से वे छूट पाए।

देखा मेरा जलवा, सबको निपटा दिया

कलेक्टर कार्यालय के एक कक्ष में बैठे कुछ पटवारी ठहाके लगा रहे थे। एक ने कहा कि देखा मेला जलवा, सबको निपटा दिया। अपन लोग जहां के तहां। एक पटवारी ने कहा कि गुरु यह सब कैसे किया। पहले पटवारी ने कहा कि विधायक जी ने अपन लोगों की शिकायत मुखिया से की थी। शिकायत का पता चलते ही मैं सक्रिय हो गया। अपने एक साहब को पटाकर योजना बनाई। योजना के तहत तमाम पटवारियों तक सूचना पहुंचा दी कि ट्रांसफर होने वाले हैं। जिसके बाद अपने साहब के पास दक्षिणा लेकर पटवारी पहुंचने लगे। जिसके मन का काम हुआ उसने भी दिया, जो निराश हुआ उससे भी लिया। सबको तितर-बितर कर दिया। विधायक जी ने अपन लोगों की शिकायत की थी, अपन अब भी जमे हैं। तीसरे पटवारी ने कहा कि धीरे बोलो, दीवारों के भी कान होते हैं। कहीं कलेक्टर साहब को हमारे षडयंत्र का पता न चल जाए।

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