इंदौर। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) इंदौर ने पानी में पालीइथाइलीन टेरेफ्थेलेट (पीईटी) प्लास्टिक कचरे से बड़े पैमाने पर ग्रीन हाइड्रोजन गैस का उत्पादन करने की प्रक्रिया विकसित की है। यह कार्य आइआइटी इंदौर के रसायन विज्ञान विभाग के प्रो. संजय के. सिंह के सहयोग से अंकित, महेंद्र, निरूपमा और तुषार की कैटेलिसिस रिसर्च टीम ने किया है। यह शोध पीईटी आधारित प्लास्टिक कचरे को रिसाइकिल करके वेस्ट से वेल्थ में बदलने के वैश्विक मुद्दे से भी जुड़ा है।
यह विकसित प्रक्रिया पीईटी के प्राथमिक घटकों के निर्माण के साथ-साथ ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन करने के लिए पीईटी कचरे को बदलने का एक सरल और प्रभावी तरीका रहेगा। इसका उपयोग आगे पीईटी उत्पादन में किया जा सकता है। यह प्रक्रिया राष्ट्रीय हाइड्रोजन मिशन और सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स (एसडीजी 7- सस्ती और स्वच्छ ऊर्जा और एसडीजी 13- जलवायु कार्रवाई) के तहत ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन की दिशा में भारत के प्रयासों के अनुरूप है।
इस पर तीन वर्षों से काम कर रही थी टीम
टीम ने 160 डिग्री सेल्सियस कम तापमान पर पीईटी कचरे को रिसाइकिल करने के लिए एक प्रभावी प्रक्रिया के साथ शुद्ध ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन किया है। बताया जा रहा है कि 33 किलोग्राम पीईटी से एक किलोग्राम हाइड्रोजन गैस बनती है। अनुमान है कि इससे हाइड्रोजन आधारित कार को 100 किलोमीटर तक चलाया जा सकता है। आइआइटी टीम तीन वर्षों से इस परियोजना पर काम कर रही थी। यह शोध केमकैटकेम जर्नल में प्रकाशित हुआ है।
क्या होता है पीईटी?
पालीइथाइलीन टेरेफ्थेलेट (पीईटी) पालिएस्टर परिवार का सबसे आम थर्मोप्लास्टिक पालिमर रेजिन है। इसका उपयोग तरल पदार्थों और खाद्य पदार्थों के लिए बनने वाले कंटेनरों और प्लास्टिक में किया जाता है। पीईटी 100 प्रतिशत रिसाइकिल करने योग्य है और इसलिए निर्माताओं द्वारा पसंद किया जाता है।
राष्ट्रीय हाइड्रोजन मिशन
भारत ने 2047 तक ऊर्जा के मामले में स्वयं को स्वतंत्र बनाने का लक्ष्य तय किया है। इसमें ग्रीन हाइड्रोजन की महत्वपूर्ण भूमिका रहेगी। इसी बात को ध्यान में रखते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 15 अगस्त 2021 को राष्ट्रीय हाइड्रोजन मिशन की घोषणा की थी। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने हाल ही में 4 जनवरी 2023 को इस मिशन को मंजूरी दे दी है। मिशन का लक्ष्य 2030 तक देश में लगभग 125 गीगावाट की नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता वृद्धि के साथ, प्रतिवर्ष कम से कम पांच मिलियन मीट्रिक टन की उत्पादन क्षमता का विकास करना है।
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