नामांतरण के नाम पर रिश्वत लेने वाले पटवारी को चार साल की सजा

 सागर। संपत्ति के नामांतरण के एवज में रिश्वत लेने वाले पटवारी नरोत्तम दास चौधरी को विशेष न्यायाधीश भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम सागर आलोक मिश्रा की अदालत ने दोषी करार देते हुये भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की घारा-7 के अंतर्गत तीन वर्ष का सश्रम कारावास एवं पांच हजार रुपये अर्थदंड व धारा-13 (1) (डी) सहपठित धारा-13 (2) के तहत चार वर्ष का सश्रम कारावास व पांच हजार रुपये अर्थदंड की सजा से दंडित किया है। मामले की पैरवी श्याम नेमा सहायक जिला लोक अभियोजन अधिकारी ने की।

घटना संक्षिप्त में इस प्रकार है कि 6 सितंबर 2016 को आवेदक कमलेश दुबे ने पुलिस अधीक्षक, लोकायुक्त कार्यालय सागर को एक हस्तलिखित शिकायत इस आशय का दिया कि वह किसानी करता है। उसके पिता का 8 नवंबर 2015 को स्वर्गवास हो जाने से वह अपने पिता की संपति अपनी मां, बहन व भाई के नाम पर कराने अर्थात् नामांतरण कराने के लिए संबंधित पटवारी अभियुक्त नरोत्तम अहिरवार के पास उसके बंडा स्थित कार्यालय गया, तो अभियुक्त ने उससे 1 हजार 500 रुपये रिश्वत राशि की मांग की। वह अभियुक्त को रिश्वत नहीं देना चाहता, बल्कि रंगे हाथों पकड़वाना चाहता है। इस आवेदन पर कार्यवाही के लिए तत्कालीन पुलिस अधीक्षक सागर ने निरीक्षक संतोष सिंह जामरा को अधिकृत किया। आवेदन में वर्णित तथ्यों के सत्यापन के लिए एक डिजिटल वाइस रिकार्डर दिया गया, इसके संचालन का तरीका बताया गया। अभियुक्त से रिश्वत मांग वार्ता रिकार्ड करने के लिए निर्देशित किया। तत्पश्चात् आवेदक द्वारा मांग वार्ता रिकार्ड की गई एवं अन्य तकनीकी कार्रवाइयां की गई एवं ट्रेप कार्यवाही आयोजित की गई । नियत दिनांक को आवेदक द्वारा अभियुक्त को राशि दी गई व आवेदक का इशारा मिलने पर ट्रेप दल के सदस्य मौके पर पहुंचे और अपना परिचय देकर अभियुक्त का परिचय प्राप्त करने के उपरांत, अभियुक्त से रिश्वत राशि के संबंध में पूछे जाने पर, रिश्वत राशि आवेदक से लेकर अपने पहने हुए कुर्ते के ऊपर की बायीं जेब में रख लेना बताया। तत्पश्चात् अग्रिम कार्यवाही प्रारम्भ की गई। विवेचना के दौरान साक्षियों के कथन लेख किए गए, घटना स्थल का नक्शा मौका तैयार किया गया अन्य महत्वपूर्ण साक्ष्य एकत्रित कर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की धारा-7 एवं धारा-13(1)(डी) सपठित धारा 13(2) का अपराध आरोपित के विरूद्ध दर्ज करते हुए विवेचना उपरांत चालान न्यायालय में पेश किया। विचारण के दौरान अभियोजन द्वारा अभियोजन साक्षियों एवं संबंधित दस्तावेजों को प्रमाणित किया गया, अभियोजन ने अपना मामला संदेह से परे प्रमाणित किया । जहां विचारण उपरांत न्यायालय-विशेष न्यायाधीश भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, सागर आलोक मिश्रा की न्यायालय ने आरोपित को दोषी करार देते हुए सजा से दंडित किया है।

Comments are closed, but trackbacks and pingbacks are open.