पीढ़ी परिवर्तन से गुजर रही भाजपा को आने वाले चुनाव में इसका लाभ मिलेगा या नहीं यह तो भविष्य ही बताएगा, लेकिन पीढ़ी चाहे नई हो या पुरानी सियासत एक सी रहती है। किरदार बदलते रहते हैं लेकिन नाटक पुराना ही चलता है। चुनावी साल में विधानसभा क्षेत्र क्रमांक एक से लेकर राऊ तक नए दावेदारों की लंबी फौज मैदान में जम चुकी है। किसी को अपने दिल्ली कनेक्शन पर भरोसा है तो कोई ‘नागपुर’ का आशीर्वाद अपने साथ बता रहा है। किसी के पास भोपाल का आश्रय प्रमाणपत्र है तो कोई जातिगत समीकरण में खुद को फिट बताता घूम रहा है। उधर पार्टी पदाधिकारी सालों से चले आ रहे रटे-रटाए जुमले कार्यकर्ताओं से कह रहे हैं- अभी कुछ मत सोचो। पहले रायशुमारी होगी, उसके बाद ही निर्णय होगा। अब इन्हें कौन बताए कि कार्यकर्ता अब सब समझता है। उसे पता है रायशुमारी के कागजों की बोरियां अगले चुनाव तक भी नहीं खुलती।
कांटों से गुजर जाते हैं दामन बचाकर, ‘फूलों की सियासत’ जख्म देती है…
जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आते जा रहे हैं नए-नए सियासी दाव-पेंच भी सामने आ रहे हैं। अब हाल ही में इंदौर में हुए केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी के कार्यक्रम को ही लीजिए। मोदी सरकार के नौ वर्ष पूर्ण होने पर सरकार की उपलब्धियों और योजनाओं पर बात करने केंद्रीय मंत्री इंदौर आई थी। इंदौर लोकसभा क्षेत्र का आयोजन होने से नगर और ग्रामीण क्षेत्र के पदाधिकारी अपेक्षित थे। प्रबुद्धजन से संवाद और बास्केटबाल कांप्लेक्स में आयोजित कार्यक्रम में ग्रामीण क्षेत्र के पदाधिकारियों की दूरी की चर्चा चल ही रही थी कि कार्यकर्ताओं का ध्यान स्टेडियम में लगे पोस्टरों-बैनरों पर चला गया। उनमें न राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय नजर आ रहे थे न महापौर पुष्यमित्र भार्गव। नगरीय आयोजनों में ग्रामीण भाजपाइयों और बड़े नेताओं की उपेक्षा का मुद्दा अब धीरे-धीरे तूल पकड़ता नजर आ रहा है। फूलों की सियासत से मिलने वाले जख्म आखिर कोई कब तक सहेगा।
सियासत का रंग अजीब होता है.. वही दुश्मन बनता है जो सबसे करीब होता है
विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुटी भाजपा को इन दिनों पार्टी के भीतर चल रही जंग का भी सामना करना पड़ रहा है। ये जंग भाजपा कार्यकर्ता बनाम प्रदेश सरकार के मंत्री और वरिष्ठ पदाधिकारियों के बीच है। बात एंटी इंकंबेंसी और कार्यकर्ताओं में नाराजगी से कहीं आगे पहुंच चुकी है। मालवा-निमाड़ में कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों के निशाने पर अपनी ही सरकार के तीन मंत्री हैं। राजवर्धन सिंह दत्तीगांव, मोहन यादव और हरदीपसिंह डंग को जिस तरह जूझना पड़ रहा है उसने कई वरिष्ठ मंत्रियों की नींद उड़ा दी है। कार्यकर्ता और पदाधिकारी न सिर्फ जुबानी हमले कर रहे हैं वरन दस्तावेजी सबूत और वीडियो जुटाकर संगठन को भी भेज रहे हैं। बात यहीं तक रहती तो भी ठीक था लेकिन असंतुष्टों की इंटरनेट मीडिया टीम इस सामग्री को जिस तरह से लोगों के बीच प्रचारित और प्रसारित कर रही है उसके बाद ये नेता यही कह रहे हैं राजनीति में जो सबसे करीब होता है वही सबसे गहरा वार कर जाता है।
तराजू में ताकत तौलकर हमला करेगी सियासत
सत्तापक्ष के कदम का विरोध करना विपक्षी अपना धर्म मानते हैं। बात चाहे छोटी हो या बड़ी, सही हो या गलत लेकिन यदि विपक्षी हैं तो विरोध ही करेंगे। इसी नीति पर कांग्रेस के प्रदेश पदाधिकारियों ने जिलों की अपनी टीम को संदेश जारी कर दिया कि हर जिले में ताकतवर भाजपाइयों की कायदे से घेराबंदी करें। सबसे पहले मंत्रियों को निशाना बनाएं और उनके कामों को लेकर तीखे सवाल जनता के बीच करें। इसके बाद दूसरे नंबर पर भाजपा पदाधिकारियों को घेरें जो ज्यादा मुखर हैं और अफसरों के साथ मिलकर कांग्रेसियों के खिलाफ लगातार कोई न कोई कदम उठाते रहते हैं। प्रदेश से फरमान मिलते ही कुछ जिलों में तो कांग्रेसी सक्रिय हो गए लेकिन इंदौर, उज्जैन, रतलाम सहित कुछ जिलों में चुप्पी छाई रही। कारणों की पड़ताल हुई तो पता चला वहां भाजपाइयों और कांग्रेसियों के ‘मधुर संबंध’ आड़े आ रहे हैं। अब ऐसे जिलों में भोपाल की टीम को नापतौल कर जुबानी हमलों की जिम्मेदारी दी गई है।
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