इंदौर। भारत में जब भी ओलिंपिक का इतिहास लिखा जाएगा, पहले स्वर्ण की चर्चा हमेशा होगी, मगर कम ही लोग जानते हैं कि स्वतंत्र भारत को पहला स्वर्ण एक इंदौरी ने दिलाया था। आजादी के अगले ही साल 1948 में हुए ओलिंपिक खेलों में भारतीय हाकी टीम ने फाइनल में अंग्रेजों को ही हराया, उनके ही घर में, उनके ही दर्शकों के सामने।
पहली बार दुनिया के सामने भारतीय राष्ट्रध्वज तिरंगा शान से लहराया। पहली बार भारत के राष्ट्रगान ‘जन-गण-मन’ के सामने अंग्रेज भी नतमस्तक खड़े नजर आए। यह कारनामा भारतीय टीम ने इंदौर के समीप महू के किशन लाल की कप्तानी में किया था। इसी सफलता पर अक्षय कुमार ने गोल्ड फिल्म बनाई है
महू में आज भी किशन लाल का घर है, जो जर्जर हो चुका है। छोटे पुत्र राजन यहां रहते हैं। इतने महान खिलाड़ी का घर तलाशना मुश्किल होता है क्योंकि न तो कोई सड़क उनके नाम पर है और न ही किसी चौराहे पर उनकी प्रतिमा लगी है। घोषणाएं कई हुईं, लेकिन देश के गौरव के सम्मान के लिए मैदानी काम कुछ नजर नहीं आता। कुछ दिन पहले स्थानीय विधायक उषा ठाकुर ने उनकी प्रतिमा लगाने की घोषणा की है। किशन लाल के नाम पर प्रदेश में कोई बड़ा टूर्नामेंट भी नहीं होता, न ही कोई खेल सम्मान दिया जाता है।
देश को पहला ओलिंपिक पदक दिलाने वाले कप्तान अपने ही घर में ‘अनजान’ हैं। राजन बताते हैं, महू या इंदौर में पिताजी के नाम पर कोई स्मारक नहीं है, लेकिन जर्मनी ने उन्हें सम्मान दिया। उन्होंने रोम ओलिंपिक से पहले जर्मनी की टीम को मार्गदर्शन दिया था। सम्मान स्वरूप वहां उनके नाम पर सड़क है। प्रकाश क्लब के सचिव देवकीनंदन सिलावट बताते हैं, हाकी के नायक को सम्मान दिलाने के लिए हमने कई बार विभिन्न सरकारों से निवेदन किया, ज्ञापन दिया, मगर हाकी के खेल और इसके नायकों के प्रति कभी सम्मान नहीं मिला।
गैर अनुभवी टीम में लंदन में लहराया था तिरंगा
वर्ष 1947 में भारत के स्वतंत्र होने से तमाम दिग्गज खिलाड़ी पाकिस्तान चले गए। वर्ष 1948 में लंदन में ओलिंपिक खेल हुए। टीम में किशन लाल और केडी सिंह बाबू दो ही अनुभवी खिलाड़ी थे। किशन लाल को कप्तान बनाया गया। शेष टीम युवा या कम अनुभवी थी। इस टीम ने आस्ट्रिया (8-0), अर्जेंटीना (9-1), स्पेन (2-0) और नीदरलैंड्स (2-1) को हराते हुए फाइनल में जगह बनाई। फाइनल ब्रिटेन से था।
किशन लाल बताया करते थे कि तब अंग्रेज प्रशंसक भारतीय खिलाड़ियों पर नस्लीय टिप्पणियां करने लगे। पहला हाफ गोलरहित रहा। बारिश भी हुई। मैदान गीला होने से किशन लाल और केडी सिंह ने दूसरे हाफ में जूते उतार दिए और अपने हमलों से अंग्रेजों को परेशान रखा। भारत ने फाइनल 4-0 से जीता और अंग्रेजों के घर तिरंगा लहराया।
कल्याण मिल टीम से भी खेले
वर्ष 1966 में तात्कालीन राष्ट्रपति डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने किशन लाल को पद्मश्री सम्मान से अलंकृत किया था। वे 20 साल तक रेलवे के कोच रहे। इनमें से 14 बार टीम चैंपियन बनी जबकि शेष छह फाइनल ड्रा रहे। वर्ष 1964 में मलेशिया और 1968 में पूर्वी जर्मनी के कोच बने। करियर की शुरुआत में महू हीरोज, महू ग्रीन वेल्स और इंदौर कल्याण मिल टीम से खेले। टीकमगढ़ के भगवंत क्लब का भी प्रतिनिधित्व किया।
केवल घोषणाएं होती रहीं, कुछ नहीं हुआ
घोषणाएं कई बार हुई हैं, लेकिन अभी तक न तो कोई मूर्ति स्थापित हुई है, न किसी सड़क का नामकरण किया गया है। कुछ समय पहले घोषणा हुई थी कि हाई स्कूल मैदान को पिताजी (किशन लाल) के नाम पर किया जाएगा, लेकिन वहां भी कोई बोर्ड उनके नाम का नहीं लगा है। देश के लिए सम्मान जीतने वालों के प्रति ऐसा व्यवहार दुखी करता है।
-राजन लाल (किशन लाल के पुत्र)
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